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कोलन और रेक्टल कैंसर स्क्रीनिंग

कोलन और रेक्टल कैंसर स्क्रीनिंग

जब डॉक्टर कैंसर या कोई भी असामान्य ग्रोथ (Growth) — जिसे पॉलीप्स (polyps) कहते हैं — के लक्षणों के लिए कोलन और रेक्टम की जाँच करते हैं, जो भविष्य में कैंसर बन सकता है, ऐसे एक परीक्षण को कोलन और रेक्टल कैंसर स्क्रीनिंग कहते हैं। यह उन लोगों में किया जा -ता है जिन कभी भी कोई लक्षण नहीं दिखे है या ऐसा कोई कारण नहीं है सोचने के लिए कि उन्हें कैंसर है या हो सकता है। इस परीक्षण करवाने का लक्ष्य यह है कि पॉलीप्स को कैंसर में बदल जाने या कैंसर होने से पहले ही निकाल दिया जाए, ताकि कैंसर बढ़ने, फैलने, या और गम्भीर समस्याओं का कारण बनने से पहले ही खोज लिया लिया जाए।

बृहदान्त्र और मलाशय पाचन तंत्र (आकृति) का अंतिम हिस्सा में होते हैं । जब डॉक्टर कोलन और रेक्टल कैंसर स्क्रीनिंग के बारे में बात करते हैं, तो वे “कोलोरेक्टल” शब्द का इस्तेमाल करते हैं। यह “बृहदान्त्र और मलाशय” कहने का एक छोटा तरीका है। सिर्फ कोलोन कैंसर स्क्रीनिंग भी कहते है।

अध्ययनों से पता चला है कि पेट के कैंसर की जांच करने से पेट के कैंसर से मृत्यु की संभावना कम हो जाती है। कई अलग-अलग प्रकार के स्क्रीनिंग टेस्ट हैं जो ऐसी जांच कर सकते हैं।

  • निमनिलिखित अलग-अलग स्क्रीनिंग टेस्ट है:

    • कोलोनोस्कोपी (Colonoscopy) – कोलोनोस्कोपी डॉक्टर को पूरे बृहदान्त्र के अंदर सीधे देखने का एक तरीक़ा है। इससे पहले कि आप एक कोलोनोस्कोपी करवाने  जाते हैं, आपको अपने बृहदान्त्र को साफ करना होगा। आप घर पर एक विशेष तरल पीते हैं जो कई घंटों तक पानी जैसे दस्त करवाता है। परीक्षण के दिन, आपको विश्रान्ति बनाने के लिए दवा मिलती है। फिर एक डॉक्टर आपके गुदा में एक पतली ट्यूब डालते हैं और इसे आपके बृहदान्त्र (आकृति) में आगे बढ़ाते  हैं। ट्यूब में एक छोटा कैमरा लगा होता है, जिससे डॉक्टर आपके कोलन के अंदर देख सकते हैं। ट्यूब के अंत में छोटे उपकरण भी होते हैं, इसलिए डॉक्टर अगर ऊतक या पॉलीप्स दिखायी देते हैं तो इनके टुकड़े निकाल सकते हैं। पॉलीप्स या ऊतक के टुकड़े हटा दिए जाने के बाद, उन्हें कैंसर की जाँच के लिए एक प्रयोगशाला में भेजा जाता है।

     

    •  इस परीक्षण के लाभ – कोलोनोस्कोपी में अधिकांश सबसे छोटे पॉलीप्स और लगभग सभी बड़े पॉलीप्स, और कैंसर पता लगा लिए जाते हैं। यदि पॉलीप्स पाये जाते हैं, तो पॉलीप्स को तुरंत हटाया जा सकता है। यह परीक्षण सबसे सटीक परिणाम देता है। यदि कोई अन्य स्क्रीनिंग परीक्षण पहले किया जाता है, और सकारात्मक परिणाम (असामान्य) जवाब में आता है, तो अनुवर्ती के लिए कोलोनोस्कोपी करनी पड़ती है। यदि आपने अपने पहले परीक्षण में कोलोनोस्कोपी की है, तो आपको शायद इसके तुरंत बाद दूसरे अनुवर्ती परीक्षण की आवश्यकता नहीं होगी।
    •  इस परीक्षण में कमियां – कोलोनोस्कोपी के कुछ जोखिम हैं। यह बृहदान्त्र के अंदर रक्तस्राव या चिरे का कारण बन सकती है, लेकिन यह केवल 1,000 लोगों में से 1 में होता है। इसके अलावा, परीक्षण करवाने के पहले, आंत्र को साफ करना कुछ लोगों के लिए एक नापसन्द कार्य हो सकता है। और तो और, आमतौर पर लोग परीक्षण के दौरान दी गयी हुई विश्रान्ति बनाने की दवा के कारण, कई लोग परीक्षण के बाद, दिनभर के लिए काम नहीं कर सकते हैं या कोई भी वाहन चला नहीं सकते हैं।

    कुछ स्थितियों में, एक डॉक्टर कुछ “कैप्सूल” कोलोनोस्कोपी कह सकता है। इस परीक्षण के लिए, आप एक विशेष कैप्सूल निगलते हैं जिसमें छोटे वायरलेस वीडियो कैमरा (Wireless Video Camera) होता है। यह तब किया जा सकता है यदि आपका डॉक्टर सामान्य कॉलोनोस्कोपी की प्रक्रिया के दौरान आपके सभी बृहदान्त्र को देखने में सफलता ना मिली हो।

    • सीटी कॉलोनोग्राफी (CT colonography) — जिसे वर्चुअल कॉलोनोस्कोपी (virtual colonoscopy) या सीटीसी (CTC) भी कहते हैं – सीटीसी एक विशेष एक्स-रे नामक “सी.टी. स्कैन” (CT scan) का उपयोग करके कैंसर और पॉलीप्स की तलाश करता है। अधिकांश सीटीसी परीक्षणों के लिए, तैयारी वैसी ही है जैसे कि कोलोनोस्कोपी के लिए ऊपर दर्शायी गयी हैं। 
    •  इस परीक्षण के लाभ – इस सीटी स्कैन से आपके कोलन को विश्रान्ति बनाने की दवा दवाओं की आवश्यकता के बिना पूरे बृहदान्त्र में पॉलीप्स और कैंसर का पता लगा सकते हैं।
    •  इस परीक्षण में कमियां – अगर डॉक्टरों को सीटीसी से पॉलीप्स या कैंसर का पता चलता है, तो आमतौर पर वे कोलोनोस्कोपी का परीक्षण भी करते हैं।

    सीटीसी कभी-कभी से कुछ ऐसे क्षेत्रों, जो स्वस्थ होते हैं, उन्हें असामान्य (या रोग्ग्र्स्त) दिखता है। मतलब, सीटीसी से आपको बिन-ज़रूरी परीक्षणों और प्रक्रियाओं करवानी पड़ती है जिनकी आपको कोई भी आवश्यकता ही नहीं होती। इसके अलावा, सीटीसी में आपको विकिरण के जोखिम का सामना करना पड़ता है। ज्यादातर मामलों में, आपके आंत्र को साफ करने की तैयारी, बिलकुल कॉलोनोस्कोपी के वक़्त की जाने की तैयारी जैसी ही है। परीक्षण महंगा है, और कुछ बीमा कंपनियां स्क्रीनिंग के लिए इस परीक्षा को कवर नहीं करती हैं।

    • रक्त के लिए मल का परीक्षण – “स्टूल” (Stool) या ‘मल’, जो अंग्रेज़ी में मल त्याग करना के लिए समानार्थी शब्द है। आम तौर पर, आपके स्टूल के नमूनों में रक्त के लिए स्टूल की जाँच होती है। कैंसर और पॉलीप्स ब्लीड कर सकते हैं, और अगर वे स्टूल टेस्ट करने के समय के आसपास ब्लीड करते हैं, तो टेस्ट में खून दिखाई देता है। परीक्षण में रक्त की थोड़ी मात्रा भी दिख सकती है, जो आम तौर पर आप संभवतः अपने मल में नहीं देख सकते हैं। 

    अन्य कम गंभीर स्थिति भी मल में कम मात्रा में रक्त का कारण बन सकती है, जो इस परीक्षण में दिखाई देंगी। आपको अपने मल त्याग से एक छोटे नमूने एकत्र करने होंगे, जिसे आप अपने डॉक्टर से प्राप्त एक विशेष कंटेनर में डालेंगे। फिर आप परीक्षण के लिए कंटेनर को बाहर भेजने के निर्देशों का पालन करेंगे। 

    •  इस परीक्षण के लाभ – इस परीक्षण में बृहदान्त्र की सफाई या कोई प्रक्रिया शामिल नहीं है।
    •  इस परीक्षण में कमियां – अन्य स्क्रीनिंग परीक्षणों की तुलना में मल परीक्षणों में पॉलीप्स को पहचानने की संभावना बहुत कम होती है। ये परीक्षण अक्सर उन लोगों में भी असामान्य विवरण बताते हैं, जिन्हें कोई भी कैंसर नहीं होता है। यदि एक मल परीक्षण में कुछ असामान्य दिखाता है, तो डॉक्टर आमतौर पर तुरंत कोलोनोस्कोपी करते हैं।
    • सिग्मायोडोस्कोपी (Sigmoidoscopy) – 

    सिग्मायोडोस्कोपी कुछ मायनों में कोलोनोस्कोपी के काफ़ी समान है। 

    इन दोनो परकिशनो की विभिन्नता सिर्फ़ यह है कि सिग्मायोडोस्कोपी परीक्षण में केवल बृहदान्त्र के अंतिम भाग को देखते हैं, और कोलोनोस्कोपी में पूरे बृहदान्त्र को देखते हैं। इससे पहले कि आप सिग्मायोडोस्कोपी करें, आपको एनीमा (Enema) का उपयोग करके अपने बृहदान्त्र के निचले हिस्से को साफ करना पड़ता है। यह सफाई की प्रक्रिया, कोलोनोस्कोपी करवाने की प्रक्रिया जितनी कठिन या पूरी तरह से अप्रिय नहीं है। इस परीक्षण के लिए, आपके अंत्र को विश्रान्ति बनाने की दवाई लेने की आवश्यकता नहीं होती है, इसलिए आप ड्राइव कर सकते हैं और बाद में दिनभर काम भी कर सकते हैं।

    •  इस परीक्षण के लाभ – सिग्मायोडोस्कोपी से मलाशय और बृहदान्त्र के अंतिम भाग में पॉलीप्स और कैंसर का पता लगा सकते हैं। यदि पॉलीप्स पाए जाते हैं, तो उन्हें तुरंत हटाया भी जा सकता है।
    •  इस परीक्षण में कमियां – 10,000 में से 2 लोगों में, सिग्मायोडोस्कोपी बृहदान्त्र के अंदर चिरे पड़ सकती हैं। बृहदान्त्र के जिस भाग को इस परीक्षण में नहि देखा जाता, उसमें अगर पॉलीप्स या कैंसर है तो इस परीक्षण में पता नहीं चल सकता की पॉलीप्स या कैंसर है या नहीं (आकृति)। यदि डॉक्टर को सिग्मायोडोस्कोपी के दौरान पॉलीप्स या कैंसर का पता लगता है, तो वे आमतौर पर तुरंत कोलोनोस्कोपी करवाने की सलाह देते हैं।
    • स्टूल डीएनए टेस्ट (Stool DNA Test) – स्टूल डीएनए टेस्ट में कैंसर के आनुवांशिक मार्करों के साथ-साथ रक्त के संकेतों के लिए भी जाँच होती है। इस परीक्षण के लिए, आपको पूरे मल (मल त्याग) को इकट्ठा करने के लिए एक विशेष किट आपको मिलती है। फिर आपको इसे कैसे और कहां जाँच के लिए देनी है, यह आपके डॉक्टर के निर्देशों के अनुसार करें।
    •  इस परीक्षण के लाभ – इस परीक्षण में बृहदान्त्र की सफाई या कोई प्रक्रिया नहीं की जाती नहीं है। जब कैंसर मौजूद होता ही नहीं है, तो यह मल में रक्त परीक्षण के लिए जो मल परीक्षण होती है उसकी तुलना में असामान्य परिणाम होने की संभावना बहुत कम होती है। इसका मतलब यह है कि, इस परीक्षण के कारण आपको कोई अन्य या अधिक अनावश्यक कॉलोनोस्कोपी करवानी नहि पड़ती।
    • इस परीक्षण में कमियां – आपके एक पूरे मल के नमूने को इकट्ठा करना, और भेजने की प्रक्रिया आपके लिए थोड़ी अप्रिय हो सकती है। यदि डीएनए परीक्षण कुछ असामान्य दिखाता है, तो डॉक्टर आमतौर पर एक कोलोनोस्कोपी करवाने के सलाह देते हैं।

    ऐसा कोई भी रक्त परीक्षण नहीं है, जो ज्यादातर विशेषज्ञों के अनुसार स्क्रीनिंग में उपयोग करने और परिणाम के लिए पर्याप्त हो।

यह तय करने के लिए, अपने चिकित्सक के साथ मिलके तय करें, की कौनसे परीक्षण आपके लिए सबसे उचित है। कुछ डॉक्टर एक से अधिक स्क्रीनिंग परीक्षणों — (उदाहरण के लिए) जैसे की सिग्मोइडोस्कोपी परीक्षण और प्लस स्टूल परीक्षण को करने के लिए चुन सकते हैं। इससे कोई फर्क नहीं पड़ता की आप कौनसी स्क्रीनिंग करवा रहे हैं, क्यूँकि इससे अधिक महत्वपूर्ण यह है — कि आप कोई तो परीक्षा करवा रहें हैं, आपकी सही और सम्पूर्ण जाँच करवाने के लिए!

  • डॉक्टर की सलाह यह होती है कि ज्यादातर लोगों को 50 साल की उम्र होने या उसके बाद, कोलन कैंसर की स्क्रीनिंग करवानी चाहिए। जिन लोगों को कोलोन कैंसर होने की संभावना या खतरा अधिक होता है, वे कभी-कभी छोटी उम्र में स्क्रीनिंग शुरू कर देते हैं। यह ऐसे लोग होते हैं, जिनके पारिवारों में ख़ास कोलोन कैंसर या कोलोन के अन्य प्रकार के रोग जैसे के “क्रोहन रोग” और “अल्सरेटिव कोलाइटिस” के बहुत ही ठोस सबूत या इतिहास में रह चुका हो। अधिकांश लोग जिनकी आयु 75 वर्ष के आसपास, या अधिकतम 85 वर्ष की आयु हो, उन्हें स्क्रीनिंग करवानी की अवशक्यकता नहीं होती है।

यह आपके कोलोन कैंसर होने की कितनी सम्भावना है, और आप कौनसी परिकक्षण करवा रहे हैं, उसपे निर्भर करता है। जिन लोगों को कोलोन कैंसर की अधिक संभावना होता है, उन्हें अक्सर अधिक बार परीक्षण करवाने की आवश्यकता होती है, और उनको कोलोनोस्कोपी करवानी चाहिए।

अधिकांश लोग जिनको कम संभावना या अधिक आशंका या जोखिम नहीं हैं, वे इनमें से कोई एक कार्यक्रम की योजना चुन सकते हैं:

  • हर 10 साल में कोलोनोस्कोपी
  • हर 5 साल में सीटी कॉलोनोग्राफी (सीटीसी) 
  • साल में एक बार मल में रक्त के लिए मल परीक्षण / स्टूल टेस्ट्स (Stool tests)
  • हर 5 से 10 साल में सिग्मायोडोस्कोपी 
  • हर 3 साल में स्टूल डीएनए (Stool DNA) परीक्षण (लेकिन परीक्षण को दोहराने के लिए डॉक्टर अभी तक सर्वश्रेष्ठ समय सीमा के लिए सुनिश्चित नहीं हैं)
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Dr. Harsh J Shah